
घर में रहते हैं,भगवान,
घर में रहते हैं, भगवान माता-पिता है ।जिनके नाम दुख सुख के हैं।ये सहभाग बच्चों को देते सब राजकर्म धर्म शिक्षा का पानी रोज पिलाते हैंमनमानी बच्चों के दुःख का करते भोग ।हे बच्चों तुम दीप सामान जलो कहते रोज।
इस कविता का मूल सारांश हमें क्या बतलाता है|
साथियों हमें इस कविता से मुल सारांश यही निकाल कर आता है। कि इस मानव रूपी संसार में हर धर्म में हर संप्रदाय में तरह-तरह के भगवान जन्म लिए हैं और लोगों के द्वारा बनाए गए हैं। पर असल जिंदगी में मां-बाप से बड़ा कोई भगवान नहीं है । जो बच्चों को सही समय पर पालन पोषण करता है भारत पोषण करता है पढ़ता लिखता है।और आगे ले जाकर उसके जीवन को सफल बनाता है वह भी मां-बाप का पद पता है। चाहे वह रिश्ते में भाई हो बहन हो मौसा हो मौसी हो चाचा चाची हो या और कोई भी क्यों ना हो पर जो एक बच्चे को लायक बनाता है उसके जीवन को सफल बनाता है। उसके जीवन के अच्छे जीवन जीने की तौर तरीका सीखाता है वही भगवान का एक पथ प्रदर्शक का दर्ज प्राप्त करता है। क्योंकि जन्म देने वाला मां-बाप होता है। पर कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है। किसी किसी के साथ की मां-बाप जन्म देने के बाद नहीं रह जाते हैं। तो उनका पालन पोषण जो कोई भी करता है वह मां-बाप का दर्जा प्राप्त करता है।और उसके लिए वही एक अच्छा भगवान का रूप माना जा सकता है।आशा करता हूं कि आपको यह कविता पसंद आई होगी। (लेखक निलेश कुमार)
No comments:
Post a Comment